भारतीय रेल ने हाइब्रिड वैक्यूम शौचालय विकसित किए

रेलवे बोर्ड की विकास इकाई ने एक “हाइब्रिड वैक्यूम शौचालय” का ऐसा नया डिजाइऩ तैयार किया है, जिसमें वैक्यूम शौचालय और जैविक शौचालय के फायदेमंद बिंदु शामिल हैं। वैक्यूम शौचालय के मानक प्रक्षालन के तरीके में बदलाव कर प्रक्षालन के बाद अतिरिक्त पानी बंद रखकर, एक विशेष मॉडल तैयार किया गया है। भारतीय रेलवे द्वारा इस परिकल्पना को व्यावहारिक मॉडल में परिवर्तित किया गया है, जो दुनिया में किसी भी रेलवे पद्धति द्वारा विकसित और तैयार किया की गई अपने तरह की पहली पद्धति है। इस नव विकसित शौचालय को डिब्रुगढ़ राजधानी मार्ग पर चलने वाली रेलगाड़ी के डिब्बा संख्या 153002/सी एफएसी में लगाया गया है।
इस विशेष मॉडल का डिजाइन व्यावसायिक रूप से उपलब्ध वैक्यूम शौचालय से लिया गया है, जिनका विमानों में उपयोग किया जाता है, जहां इसका अपशिष्ट जैविक निस्तारण टैंक में डाला जाता है। यही पद्धति अब भारतीय रेलवे के जैविक शौचालयों में कारगर रही है। जैविक निस्तारण टैंक डिब्बे के नीचे लगा होता है और इसमें अवायवीय जीवाणु होते हैं, जो मानव मल को भूमि/पटरी पर फेंकने से पहले जल और कुछ गैस में तब्दील कर देते हैं। आमतौर पर पारम्परिक शौचालय या जैविक शौचालय में हर बार प्रक्षालन में 10-15 लीटर पानी का उपयोग किया जाता है, जबकि वैक्यूम शौचालयों में प्रत्येक प्रक्षालन के लिए करीब 500 मिली लीटर पानी ही लगता है। जल अमूल्य प्राकृतिक संसाधन है, इसलिए जैविक शौचालय के वर्तमान डिजाइन/पारम्परिक शौचालय की तुलना में इस नवाचार से कम से कम 1/20वें भाग जल की बचत होगी।

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